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गाँव में शहर की हँसी / ओमप्रकाश सारस्वत

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यूँ कई राष्ट्रीय महत्व के अवसरों पर
मेरा देश
मेरे गाँव का पर्याय हो जाता है
उस दिन सारा भारत
गाँवों में जा बसता है
(मेरा मन उस दिन खूब हँसता है
मैं साल में कभी-कभी ही
खिल कर हँसता हूँ)

मेरा देश पर्याप्त उन्नति कर गया है
इस की खबर
मेरे गाँव के दुकानदार के पास
फटे हुए दैनिक अखबार के टुकड़ों में
(दूसरे दिन ही सही)
उपलब्ध हो जाती है अवश्य

मेरे गाँव का दुकानदार

(लोग उसे 'शाहजी' कहते है।
(पर उसका नाम 'भीखू' है)
अखबार रद्दी के लिए मँगाता है
क्योंकि उस अनपढ़ ? की समझ में
अखबार ;

मँच से उछाले गये बहुपक्षीय झूठ का
टेबल पर गढ़ा गया एक पक्षीय बयान है
कभी-कभी उसकी इस धारणा को
निर्मूल करने के लिए
गाँव के उस छोटे से बाज़ार में
आ जाते हैं बड़े-बड़े नेता
जो भीखू की दुकान के सामने
तम्बू गाड़ कर
और अपनी पार्टी का झण्डा
उसकी दुकान पर अंटा कर
(क्योंकि कुछ बोट उसके भी
हाथ में होते हैं)
अपने वागस्त्र को
अमोघास्त्र की तरह
प्रयुक्त करते हुए
लोगों के वोटों से खरीदी हुई सुविधाओं को
पान की तरह चबाते हुए
साधिकार
बताते हैं

जनाब !
इस साल मौसम
हमारे कलेण्डर के अनुसार आएगा
(हमने हर घटना की
सरकारी तिथि तय कर रखी है)

हम हवाओं का रुख मोड़ देंगे
(और उस हकीकत का मुंह तोड़ देंगे
जो सही उतरने की कोशिश करेगी)

हम एक ही नहर खुदवाएंगे
सारे देश में
जो गंगा की तरह स्मरण मात्र से ही
पूर्वजों तक को तार देगी
स्गर-पुत्रों की तरह
सभी नालायक पुत्रों समेत

हम चट्टानों पर बासमती उगाएंगे!
(और खेतों की बासमती खुद खा जाएंगे)

हम एक व्यापक योजना के अनुसार
हरेक हाथ को काम
(भले ही हाथापाई का ही हो)

और हरेक दिमाग़ को
'जुझारू' चिंतन देंगे
(क्योंकि आज सारा देश
राजनीतिज्ञ होने को मतवाला हो रहा है)

अब पूरे देश का मानचित्र
हमारी नज़रों में है
इस पर किसी एक पार्टी को
कब्ज़ा नहीं करने देंगे
हम देश को कुछेक हाथों में ज़ब्त नहीं होने देंगे

तुम हम पर भरोसा रखो
(नहीं भी रखोगे तो क्य्आ कर लोगे?)
हमने आखिर क्या नहीं किया?

हम तुम्हें नारे देंगे
(भूख के स्थान पर)

हम तुम्हें तरक़ीब देंगे
(ईमानदारी से मरने की)

हम तुम्हें हौसला देंगे
(गोली खाकर हलाल होने का)

हम तुम्हें स्वप्न देंगे
9जो सात जन्म तक नहीं आएगा)

इसलिए उठो
(हमारा समर्थन करने को)

जागो
(हमारी रखवाली करने को)

और जगाओ औरों को
(अपने नेताओं को प्रभातफेरी निकलने को)

देखो भारत ने बहुत तरक्की की है!

भारत अब एक महान राष्ट्र है
(जैसे इन्हीं के कहने से महान हुआ हो)

इसकी परम्पराएँ महान् हैं
(जैसे पहले थी ही नहीं)

इन्हें जीवित रखना
(मारने का काम इन्होंने स्वयं ले रखा है)

बल्कि इन्हें और सुदृढ़ करना
आप सबके हित में है
इनके हित में क्या है वह
वे स्टेज पर नहीं कहते)

और सुनिए
नेता बनना कोई आसान नहीं
फिर भी हम जो
जैसे-तैसे बन गए हैं
वह सब आपका ही आशीर्वाद है
हम आपकी जैसी भी सेवा कर सके या
कर रहे हैं
हमें इस पर गर्व है
(आपको भी होना चाहिए)

उस दुकानदार की दुकान के पास
हर चुनाव के वर्ष
ऐसे कई गाँवडोब मौसमी भाषण
होते ही रहते हैं, बरसात की तरह

पर भीखू इन भाषणों में न डूब कर
(क्योंकि उसे भाषनों की गहराई का ज्ञान हो गया है)
वह रेडियों से प्रसारित ऐसे कई अन्य भाषणों को भी
लोगों को सुनाता है अपनी टिप्पणी के साथ :

हमारे सम्बन्ध
पड़ोसी देशों के साथ अच्छे हो रहे हैं
(हमें अपने पड़ोसियों
खासकर पड़ोसिनों से अच्छे सम्बन्ध बनाने चाहिए)

हम विकासशील देशों की
प्रथम पंक्ति में आ विराजे हैं
(हमें भी अपना लाब ह देखकर
बिना नम्बर के भी प्रथम पंक्ति में
उछल कर आना चाहिए आते)

राष्ट्रपति ने कहा है
हमें आलस छोड़ कर
मेहनत करनी चाहिए
(भाईयो! बिना मेहनत के
तुम्हीं बताओ,कहाँ क्या होता है?)


प्रधानमंत्री ने कहा है
हमें भयमुक्त होकर रहना चाहिए
(इसीलिए कहता हूँ कि
किसी भी किसिम का भय
हममें नहीं होना चाहिए )

उसकी दुकान उस इलाके की
सूचना एवं प्रसारण केन्द्र है
जो कहीं-कहीं गरज के साथ छींटे पड़ने
की खबरों से लेकर
ईरान में तेल की कीमतें बढ़ने
की खबरों तक को
एक साथ प्रचारित करती है
समभाव से

वह सरकार को
(सरकार के नाम पर वह झल्ला उठता है एकदम
प्रपंचियों की जमात कहता है
वह कहता है:
चार खेत थे अपने
सो भी ले गये मुजारे
अब मालिक क्या खाए6गे?
(सरकार का.......)

नौकरी के लिए जाओ तो
सब सीटें रिज़र्व
पर जब सारे ही
नौकरी के लालच में
हरिजन हो जाएंगे
(उसे अनुसूचित और जनजातियों का शायद पता ही नहीं है)

तब सरकार
किस-किस को नौकरी देगी

वह कहता है
उसका छोक़रा दस पढ़ा है
पर जहाँ भी जाता है
वहाँ फोन वाले या बड़े अफसर
या रिज़र्व कोटे वाले
ले जाते हैं सब स्थान

तो बताओ ?
और वह बिना मंगलचरण के ही
सधे हुए पंडित की तरह
गाली-पुराण का सम्पुट कर डालता है

एक दिन मैंने उससे कहा कि
ताऊ! तुम्हारे धंधे में भी तो बेईमानी है
लोग मिलावट को अधिकार
और ठगी को लक्ष्मी का आदेश मान बैठे हैं
तो वह बोला
मुन्नू !
हम क्या करें

जब तुम लोग
हराम की कमाई से
हर रोज़ मलाई खाओगे

तो क्या हम लोग
मिलावट की कमाई से
एक गिलास दूध भी नहीं पी सकते

मैं तब उसके सामने
सभ्य बनने के प्रयत्न में
गाँव की हँसी में
शहर की हँसी मिला रहा था