भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एव सरह भणइ खबणाअ / सरहपा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 4 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरहपा }} Category:दोहे <poeM>एव सरह भणइ खबणाअ मोक्ख महु क...)
एव सरह भणइ खबणाअ मोक्ख महु किम्मि न भावइ।
तत्त रहिअ काया ण ताव पर केवल साहइ॥
सरह ऐसा कहता है कि क्षपणकों का मोक्ष मुझे अच्छा नहीं लगता। उनका शरीर तत्वरहित होता है और तत्वरहित शरीर परमपद की साधना नहीं कर सकता।