भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षण भर में जो बात हो गई / प्रेम भारद्वाज

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:04, 5 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्षण भर में जो बात हो गई
जनम-जनम सौग़ात हो गई

कैसी आँख झुकाई उसने
रहा अबोला बात हो गई

मुँह में राम बगल में छुरियाँ
लेकर भीतर घात हो गई

शह भी हमने दी थी फिर भी
अपनी बाज़ी मात हो गई

बीहड़ वन है सफर पहाड़ी
दूर ठिकाना रात हो गई

बात ज़रा सी छेड़ी ही थी
बस्ती बस्ती बात हो गई

सच्चाई फिर गांधी ईसा
दयानन्द सुकरात हो गई

कितना प्रेम सताया होगा
शे'रों की बरसात हो गई