भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ाली तमाशबीन मदारी है मालामाल / प्रेम भारद्वाज
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:07, 5 अगस्त 2009 का अवतरण
खाली तमाशबीन मदारी है मालोमाल
कुछ हाथ का कमाल तो कुछ बात का कमाल
पकड़ा गया है काफिला बचता है रहनुमा
ऐसे भी चला है वो लेकर यहाँ मशाल
फिलहाल तो वह मस्त है ऊँची उड़ान में
बैठा कभी जो पास तो पूछेंगे हाल-चाल
लगती रही बराबर दोनों तरफ़ ही आग
उलझे हुए जवाब थे रूठे हुए सवाल
मंझधार में ही रूठ गईं ज़िन्दगी कहीं
वरना कहाँ थी मौत की इतनी यहाँ मजाल
बेशक इन्हें बाँध के रक्खा तो था हमें
पर बंदिशों को बारहा तोड़ा किये ख्याल
जीने की चाह भी उसे देगी कई फरेब
खग तो पड़ेगा टूट कर चाहे बिछे हों जाल
निभती नहीं है दोस्त अगर बारहा कहीं
नफ़रत ही पा रहा हो सदा प्रेम का सवाल