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आज़माइश की घड़ी आई तो है / प्रेम भारद्वाज
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आजमाईश की घड़ी आई तो है
ले अगर माहौल अंगड़ाई तो है
गो बरसने को अभी लगती नहीं
पर घटा आकाश पर छाई तो है
दम घुटे ऐसी तो नौबत है नहीं
साँस लेने मे6 ही कठिनाई तो है
सरफराशी देखकर मकतूल की
आँख कातिल की भी शरमाई तो है
काँपते हाथों से साग़र तोड़ कर
गफलन सही उसने कसम खाई तो है
हो रहेगा कुछ न कुछ अब तो ज़रूर
बात सड़कों तक उतर आई तो है
जन्म लेंगे तब्सरे या फब्तियाँ
आज महफ़िल में ग़ज़ल छाई तो है
देखिए मरहम कहाँ मिलता है अब
चोट ताज़ा प्रेम की खाई तो है