भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज़माइश की घड़ी आई तो है / प्रेम भारद्वाज

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:09, 5 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आजमाईश की घड़ी आई तो है
ले अगर माहौल अंगड़ाई तो है

गो बरसने को अभी लगती नहीं
पर घटा आकाश पर छाई तो है

दम घुटे ऐसी तो नौबत है नहीं
साँस लेने मे6 ही कठिनाई तो है

सरफराशी देखकर मकतूल की
आँख कातिल की भी शरमाई तो है

काँपते हाथों से साग़र तोड़ कर
गफलन सही उसने कसम खाई तो है

हो रहेगा कुछ न कुछ अब तो ज़रूर
बात सड़कों तक उतर आई तो है

जन्म लेंगे तब्सरे या फब्तियाँ
आज महफ़िल में ग़ज़ल छाई तो है

देखिए मरहम कहाँ मिलता है अब
चोट ताज़ा प्रेम की खाई तो है