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करने लगेगा बात वोह भी सोचकर / प्रेम भारद्वाज

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करने लगेगा बात वह भी सोचकर
रोटियाँ उसको मिली जो पेट भर

अब मदारी को नचाएगा ज़रूर
हद से ज़्यादा पढ़ गया है जानवर

दूर क्या कर पाएगा बीमारियाँ
रोग के फंदे में ख़ुद है डॉक्टर

आम गिनती में न था उसका शुमार
बाढ़ सूख़े में मरा जो ख़ासकर

कद का बौनापन कहाँ देखा गया
बाप की ऊँची पहुँच को देखकर

आदमी को डाल दी उसने नुकेल
आदमी को आदमी से तोड़कर

आज ये फंदा उसे डल जाएगा
जिसके गले में आ गया यह नापकर

कौन समझेगा ये तेरी चुप्पियाँ
तू भी कुछ तो चीख ठंडी आह भर

जा बसेंगे दूरे ये तीतर बटेर
बन रही हैं सड़कें जंगल काट कर

नाम पर पीपल के बच्चों को यहाँ
रह गये दिखा कर हम पापलर

बरगदों की ओट जो पलता रहा
उस पुराने प्रेम की बातें न कर