माखन की चोरी के कारन, सोवत जाग उठे चल भोर।
ऍंधियारे भनुसार बडे खन, धँसत भुवन चितवत चहुँ ओर॥
परम प्रबीन चतुर अति ढोठा, लीने भाजन सबहिं ढंढोर।
कछु खायो कछु अजर गिरायो, माट दही के डारे फोर॥
मैं जान्यो दियो डार मँजारी, जब देख्यो मैं दिवला जोर।
'चतुर्भुज प्रभु गिरिधर पकरत ही, हा! हा! करन लागे कर जोर॥