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तुम करतार, जन-रच्छा के करनहार / सेनापति
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तुम करतार, जन-रच्छा के करनहार,
पुजवनहार मनोरथ चित चाहे के।
यह जिय जानि 'सेनापति है सरन आयो,
ुजिये सरन, महा पाप-ताप दाहे के॥
जो को कहौ, कि तेरे करम न तैसे, हम
गाहक हैं सुकृति, भगति-रस-लाहे के।
आपने करम करि, हौं ही निबहौंगो तोपै,
हौं ही करतार, करतार तुम काहे के॥