भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रावन को बीर 'सेनापति रघुबीर जू की / सेनापति
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 5 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सेनापति }} Category:पद <poeM>रावन को बीर 'सेनापति रघुबीर ...)
रावन को बीर 'सेनापति रघुबीर जू की,
आयो है सरन, छाँडि ताही मद अंध को।
मिलत ही ताको राम, कोपि कै करी है ओप,
नाम जोय दुर्जन-दलन दीनबंध को॥
देखो दानबीरता, निदान एक दान ही में,
कीन्हें दोऊ दान, को बखानै सत्यसंध को।
लंका दसकंधर की दीनी है बिभीषन को,
संका विभीषन की सो, दीनी दसकंध को।