भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँई तेरे कारन नैना भये बिरागी / दूलनदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 6 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दूलनदास }} Category:पद <poeM>साँई तेरे कारन नैना भये बिर...)
साँई तेरे कारन नैना भये बिरागी।
तेरा सत दरसन चहौं, और न माँगी॥
निसु बासर तेरे नाम की, अंतर धुनि जागी।
फेरत हौं माला मनौं, ऍंसुवनि झरि लागी॥
पलक तजी इस उक्ति तें, मन माया त्यागी।
दृष्टि सदा सत सनमुखी, दरसन अनुरागी॥
मदमाते राते मनौं, दाधै बिरहागी।
मिलु प्रभु 'दूलनदास के, करु परम सुभागी॥