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जावक के भार पग धरा पै मंद / द्विज
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जावक के भार पग धरा पै मंद,
गंध भार कचन परी हैं छूटि अलकैं।
द्विजदेव तैसियै विचित्र बरूनी के भार,
आधे-आदे दृगन परी हैं अध पलकैं॥
ऐसी छबि देखी अंग-अंग की अपार,
बार-बार लोल लोचन सु कौन के न ललकैं।
पानिप के भारन संभारति न गात लंक,
लचि-लचि जात कुच भारन के हलकैं॥