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अक्षम हूं मैं / केदारनाथ अग्रवाल
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					आतंकित करता है मुझे मेरा सम्मान ।
इसी वक्त तो  परास्त  करती  हैं मुझे
मेरी कमजोरियां ।
कांपता हूं मैं, यश की विभूति से विभूषित,
रक्त-चंदन  का  टीका  भाल  पर  लगाए,
पुष्पमाल के रूप में 
सर्पमाल को लटकाए ।
अक्षम हूं मैं असमर्थताओं का पुतला,
गौरव-गुन-हीन, अबलीन,   धुंधला,
काल-पीड़ित  कविता   में
बहुत-बहुत  दुबला ।
रहने  दो   बंधु !
मुझे  रहने  दो  अवहेलित,
जीने दो जीवन को तापित औ' परितापित,
निष्कलंक रह लूंगा
चाहे  रहूं  अवमानित  ।
	
	