भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ / गुलज़ार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझता नहीं धुआँ
उठता तो है घटा सा बरसता नहीं धुआँ

चूल्हे

नहीं जलाये या बस्ती ही जल गई 

कुछ रोज़ हो गये हैं अब उठता नहीं धुआँ

आँखों से पोंछने से लगा आँच का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुआँ