भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कद्दू पे बैठी दो बच्चियाँ / शार्दुला नोगजा

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:54, 11 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शार्दुला नोगजा }} <poem>रूप ले ले मेरा, रंग भी छीन ले ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रूप ले ले मेरा, रंग भी छीन ले
ये कमर लोच रख, ये नयन तीर ले !
वो जो कद्दू पे बैठी हैं दो बच्चियाँ
ओ उमर तू मुझे बस वहीं छोड़ दे !



बस समय मोड़ दे !



आ उमर बैठ सीढ़ी पे बातें करें
आंगनों में बिछे, काली रातें करें
फूल बन कर कभी औ’ कभी बन घटा
माँ से नज़रें बचा पेड़ पे जा चढ़ें !



आ ये पग खोल दे !



क्या तुझे याद है सीपियाँ बीनना
दूर से आम कितना पका चीन्हना
और चुपके से दादी के जा सामने
चाचियों का बढ़ा घूँघटा खींचना !



पल वो अनमोल दे !



वो जो भईया का था छोटा सा मेमना
उसकी रस्सी नरम ऊन ला गूंथना
बस मुझे तू वहीँ छोड़ आ अब उमर
चारागाहों में भाता मुझे घूमना !



पट खुले छोड़ दे!