भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आलू का सीज़न / अजेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 14 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजेय |संग्रह= }} <poem> गोली मार टरक को यार। अब तो रात ...)
गोली मार टरक को यार।
अब तो रात होने को है
ठंड भी कैसी है
कमबखत
वो सामने देखते हो लेबर कैम्प
सोलर जल रहा जहाँ
मेटनी के तम्बू में
चल , दो घूंट लगाते हैं
जीरे के तड़के वाली
फ्राईड मोमो के साथ
गरमा जाएगा जिसम
गला भी हो जाएगा तर
दो हाथ मांगपत्ता हो जाए
पड़े रहेंगें रात भर
सुबह तक पटा लेगें किसी उस्ताद को हज़ार पाँच सौ में
खुश हो जाएगी घरवाली।