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अभी परिन्दों में धड़कन है / राधेश्याम बन्धु
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अभी परिन्दों
में धड़कन है,
पेड़ हरे हैं ज़िन्दा धरती,
मत उदास
हो छाले लखकर,
ओ माझी नदिया कब थकती?
चांद भले ही बहुत दूर हो
राहों को चांदनी सजाती,
हर गतिमान चरण की खातिर
बदली खुद छाया बन जाती।
चाहे
थके पर्वतारोही,
धूप शिखर पर चढ़ती रहती।
फिर-फिर समय का पीपल कहता
बढ़ो हवा की लेकर हिम्मत,
बरगद का आशीष सिखाता
खोना नहीं प्यार की दौलत।
पथ में
रात भले घिर आए,
कभी सूर्य की दौड़ न रूकती।
कितने ही पंछी बेघर हैं
हिरनों के बच्चे बेहाल,
तम से लड़ने कौन चलेगा
रोज दिये का यही सवाल ?
पग-पग
है आंधी की साजिश,
पर मशाल की जंग न थमती।
मत उदास
हो छाले लखकर,
ओ माझी नदिया कब थकती?