भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आदमी की अजब-सी हालत है / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 14 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शेरजंग गर्ग |संग्रह= }} <Poem> आदमी की अजब-सी हालत है। ...)
आदमी की अजब-सी हालत है।
वहशियों में ग़ज़ब की ताक़त है॥
चन्द नंगों ने लूट ली महफ़िल,
और सकते में आज बहुमत है।
अब किसे इस चमन की चिन्ता है,
अब किसे सोचने की फुरसत है?
जिनके पैरों तले ज़मीन नहीं,
उनके सिर पर उसूल की छत है।
रेशमी शब्दजाल का पर्याय,
हर समय, हर जगह सियासत है।
वक़्त के डाकिये के हाथों में,
फिर नए इंक़लाब का ख़त है।