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मेरी भाषा है वह / नंदकिशोर आचार्य

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हर रात वह आवाज़
साथ ले चलती है मुझको
बतियाती हुई
ख़ामोशी की दहलीज तक अपनी-
वहीं से पर लौटा देती
दरवाज़ा खुला रखा है मगर-
अन्दर नहीं लेती।
कवि क्या बातों के काबिल है
केवल-
ख़ामोशी के नहीं?

कैसे वह जानेगी?

बसाए हूँ उसको अपने में जैसे मैं
मुझको अपने अन्दर ले कर देखे तो सही
मेरी भाषा है वह-
जानती भी है अच्छे से
अब मैं जाऊंगा कहाँ
- जब मेरी नियति है वही?