Last modified on 15 अगस्त 2009, at 16:24

तुम लिखती हो / नंदकिशोर आचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:24, 15 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कवि प्रेम से भी अधिक
शब्द से प्रेम करता है

प्रेम मिल भी जाता है कभी
शब्द पर कभी नहीं मिलता

कविता कैसे हो तब?

रास्ता यही रहा केवल-
कवि लिखे नहीं
कविता
ख़ुद ही हो जाए
जिसे तुम लिखती हो भाषा।

पा लिया क्या तुमने
मुझमें अपना वह शब्द।