भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभिलाष / पढ़ीस
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 19 अगस्त 2009 का अवतरण
काकनि जि हम हूँ पढ़ि पाइति।
जण्टर मैन बनित छिनहे मा-
पहिनिति उजल कोटु पैजामा;
लरिकन की महतारी ऊपर-
कसि के हुकुम चलाइति।
ठाठ गाँठि कै सहरै जाइति
बात-बात पर बात बनाइति
मुंसिफ साहब के दमाद ते-
अबे-तबे बतलाइति।
जानि बूझि अँगुठा धरवाइति,
लाला ते लम्बर जिखवाइति,
ठकुरन ते बड़कये खेत की-
बड़ी रसीद लिखाइति।
यहु फुटहि तकदीर क नकसा!
खोलिति अपनै अलग मदरसा
दुनिया वाले पढ़े लिख्यन का-
टिल्लइ तिल्ल उड़ाइति।
शब्दार्थ :
छिनहे मा = क्षण में ।
सहरै = शहर को