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अभिलाष / पढ़ीस

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काकनि जि हम हूँ पढ़ि पाइति।
जण्टर मैन बनित छिनहे मा-
पहिनिति उजल कोटु पैजामा;
लरिकन की महतारी ऊपर-
कसि के हुकुम चलाइति।

ठाठ गाँठि कै सहरै जाइति
बात-बात पर बात बनाइति
मुंसिफ साहब के दमाद ते-
अबे-तबे बतलाइति।

जानि बूझि अँगुठा धरवाइति,
लाला ते लम्बर जिखवाइति,
ठकुरन ते बड़कये खेत की-
बड़ी रसीद लिखाइति।

यहु फुटहि तकदीर क नकसा!
खोलिति अपनै अलग मदरसा
दुनिया वाले पढ़े लिख्यन का-
टिल्ल‍इ तिल्ल उड़ाइति।

शब्दार्थ :
छिनहे मा = क्षण में ।
सहरै = शहर को