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कैसा समय / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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साधो!
कैसा नगर है यह
और कैसा समय
अकड़े हैं पुरुष
और जकड़े हैं पुरुष
भरी हैं स्त्रियाँ
और डरी हैं स्त्रियाँ
किलक रहे बच्चे
औ’ कलप रहे बच्चे
साधो!
कैसा नगर है यह
और कैसा समय
सभी दिप रहे
अपनी-अपनी आशा में
सभी छिप रहे
अपनी-अपनी भाषा में
साधो!
कैसा नगर है यह
और कैसा समय?