Last modified on 20 अगस्त 2009, at 16:07

अमर प्रेम का क्षण / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 20 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=आखर अनंत / विश्व...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ भी नहीं था बाहर

सारा ब्रह्माण्ड सिमट आया था
शरीर में

कुछ भी नहीं था भीतर

सारी चेतना उड़ गई थी
अन्तरिक्ष में

कौन-सा क्षण था वह
हमारे अमर प्रेम का
जिसका नहीं किया हमने
अनुभव।