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कैसे लोग थे हम / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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गेहूँ की बाली में लगते रहे कीड़े
हम ख़ामोश रहे
सफ़ेद कपड़ों से काँपते रहे गाँव
हम ख़ामोश रहे
समुद्र में तूफ़ान आया
हम ख़ामोश रहे
ज्वालामुखी विस्फोट हुए
हम ख़ामोश रहे
बादलों से आग की वर्षा हुई
हम ख़ामोश रहे
उसने खींच ली म्यान से तलवार
हम ख़ामोश रहे

कैसे लोग थे हम
हमें बोलने की छूट दी गई
हम ख़ामोश रहे ।