भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह सन्नाटा / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 21 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह= }} Category: कविता <Poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे टूटेगा यह सन्नाटा
जो एक भयानक तूफ़ान के बाद
हमारे चेहरों पर उतर आया है।
सुरंगों में घिर गए हैं सहयात्री
ख़ामोश हो गई हैं मन्दिरों की घंटियाँ
एक हाथी मरा पड़ा है न्यायालय के कठघरे में
बाहर कोई पत्ता तक नहीं हिलता।
केवल अन्धेरा है
जो आहिस्ते-आहिस्ते
फैलता जा रहा है कमरे में
और बाहर रेतीले तट पर
जहाँ शिथिल हो गया है सागर
और हवाओं में चीख़ने की ताक़त नहीं रह गई है।