पहाड़ो! प्रतिरोध करो
भारी पड़ेगी चुप्पी तुम्हारी।
कुछ तो बोलो।
कुछ तुँदियाद गावद-तकियों पर पसरे
तुम्हारी छाती में सुराख़ कर
अपनी सोने की ईँटें चिन रहे हैं।
सारी ताकत समेट अन्दर की
धकिया दो, जलवतन कर दो
बारूद को।
बरना तुम टुकड़े-टुकड़े टूट जाओगे
नुच जाएगी हरियाली
धुआँ बन जाएँगे बादल
बेमुरौव्वत हो जाएँगे पँछी
और कौन जाने दरिन्दगी पर
उतर आए आदमी भी।