भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजा घेपंङ / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:32, 23 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम
मुँह में छिपा लाए थे जौ
अपनी प्रजा के लिये
नियमित किया वर्षा को
लाया बर्फ
बारिश न हो
इसलिये निकल पड़े घर से।

आज,जब जौ कोई नहीं खाता
प्रजा ने छोड़ दी लाहौल की
बर्फीली भूमि
बदल गया सारा ज़माना
फिर भी सत बचा है
आज भी उठाती है प्रजा तुम्हें
अपने कँधों पर
ले जाती दूर दूर
उत्सव होते तुम्हारे आगमन पर
छंग बाँटी जाती
उधर लोग प्रार्थना करते
राजा घेपंङ वापिस आप
अपने ठिकाने
तुम घर जाओ तो
बारिश गिरे
बर्फ गिरे।