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त्रिवेणी न. 7-8 / गुलज़ार
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					7.
गोले, बारूद, आग,  बम,  नारे
बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है 
बंध खोलो कि आज सब "बंद" है 
8.
रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था -
चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर 
सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना
 
	
	

