भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गमे- दुनिया बहुत इज़ारशाँ है / ख़ुमार बाराबंकवी

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:24, 29 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खुमार बाराबंकवी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> गमे- दुनिया ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गमे- दुनिया बहुत इज़ारशाँ है
कहाँ है ऐ गमे जाना कहाँ है

एक आंसू कह गया सब हाल दिल का
मैं समझा था ये जालिम बेजुबां है

खुदा महफूज़ रखे आफतों से
कई दिन से तबियत शादुमाँ है

वो कांटा है जो चुभ कर टूट जाये
मोहब्बत की बस इतनी दासतां है

ये माना जिंदगी फानी है लेकिन
अगर आ जाये जीना, जाविदां है

सलामे आखिर अहले अंजुमन को
'खुमार' अब ख़त्म अपनी दास्ताँ है