भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब दिल ने तड़पना छोड़ दिया / बेकल उत्साही
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:45, 30 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= बेकल उत्साही |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> जब दिल ने तड़पन...)
जब दिल ने तड़पना छोड़ दिया
जलवों ने मचलना छोड़ दिया
पोशाक बहारों ने बदली
फूलों ने महकना छोड़ दिया
पिंजरे की सम्त चले पंछी
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया
कुछ अबके हुई बरसात ऐसी
खेतों ने लहकना छोड़ दिया
जब से वो समन्दर पार गया
गोरी ने सँवरना छोड़ दिया
बाहर की कमाई ने बेकल
अब गाँव में बसना छोड़ दिया