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हम को यूँ ही प्यासा छोड़ / बेकल उत्साही

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हम को यूँ ही प्यासा छोड़
सामने चढ़ता दरिया छोड़

जीवन का क्या करना मोल
महंगा ले-ले, सस्ता छोड़

अपने बिखरे रूप समेट
अब टूटा आईना छोड़

चलने वाले रौंद न दें
पीछे डगर में रुकना छोड़

हो जाएगा छोटा क़द
ऊँचाई पर चढ़ना छोड़

हमने चलना सीख लिया
यार, हमारा रस्ता छोड़

ग़ज़लें सब आसेबी हैं
तनहाई में पढ़ना छोड़

दीवानों का हाल न पूछ
बाहर आजा परदा छोड़

बेकल अपने गाँव में बैठ
शहरों-शहरों बिकना छोड़