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पत्ते / इला प्रसाद
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वक़्त की शाखों से
गिरते हैं पत्ते
दिनों के
आज, कल, परसों
हर पत्ते के साथ ही
मुरझाता जाता है मन
शाखें नहीं बदलती
नहीं बदलते सपने
कुम्हलाता है मन
इन टहनियों के सूखने
और नयी टहनियों के पनपने तक
गिनने हैं पत्ते
गुजारने हैं दिन