भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूं / भारत भूषण
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 31 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण }} Category:गीत <poem>सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लू...)
सौ-सौ जनम प्रतीक्षा कर लूं
प्रिय मिलने का वचन भरो तो!
पलकों पलकों शूल बुहारूं
अंसुअन सींचू सौरभ गलियां
भंवरों पर पहरा बिठला दूं
कहीं न जूठी कर दें कलियां
फूट पडे पतझर से लाली
तुम अरुणारे चरन धरो तो!
रात न मेरी दूध नहाई
प्रात न मेरा फूलों वाला
तार-तार हो गया निमोही
काया का रंगीन दुशाला
जीवन सिंदूरी हो जाए
तुम चितवन की किरन करो तो!
सूरज को अधरों पर धर लूं
काजल कर आंजूं अंधियारी
युग-युग के पल छिन गिन-गिनकर
बाट निहारूं प्राण तुम्हारी
सांसों की जंजीरें तोडं
तुम प्राणों की अगन हरो तो