भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्ता / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 1 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ }} <...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक हवा है
जो होती है सदा
हर जगह हर समय
रहती है मौजूद
दिखलाई नहीं पड़ती।

महसूस होती है
जब फड़फडाता है कोई काग़ज़
पेपरवेट में अड़ा
या तड़पती है फायल
डीलिंग हैंड से दबी।

महसूस होती है
जब साईन करता है
कोई सक्षम अधिकारी।

सत्ता अहसास दिलाती है
अपने होने का
कभी धीरे-धीरे
वासंती होकर
कभी डराती है
आँधी अंधड़ बनकर
तो कभी झुलसाती हइ लू बनकर।

यह वही है
जिससे एकाएक राजा बन जाते राहगीर
रंक हो जाते सिंहासनारूढ़ ।
जो होती है सदा
हर जगह हर समय
दिखलाई नहीं पड़ती।