भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विपर्यय / मनोज कुमार झा

Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 4 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} <poem> रीढ मोडी घुटने टेके बना घोड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रीढ मोडी

घुटने टेके

बना घोडा

बच्‍चे बैठें

करें खिलखिल

खिले सरसों

मन हरा हो

पर ये खट खट

किसके जूते

कौन सिर पे मूतता है

हे प्रभो, तूं सूतता है।