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अंगीकार / अशोक वाजपेयी
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जब वह अपने ओंठों पर
चुम्बन की प्रतीक्षा कर रही थी
वसन्त ने चुना स्पर्श के लिए
उसके बाएँ कुचाग्र को
जब वह अन्यमनस्क थी
उसके आर्द्र अन्धेरे में प्रवेश किया
एक धधकते पुष्प की तरह
वसन्त ने
जब वह अपने लावण्य में
परिपक्व थी
उसके बखान में
ठिठका रह गया
एक शब्द की तरह
वसन्त
स्वीकार के बाद
चकित वसन्त ने
उसे किया बहुधा अंगीकार
रचनाकाल :1990