भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने / बुनियाद हुसैन ज़हीन

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 7 सितम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने फूँके हैं आशियाँ कितने
हमको मालूम है कहाँ कितने

बागबानो से पूछते रहिए
और जलने है गुलिस्ताँ कितने

तेरे दिल पर हसीन यादों के
छोड़ जाऊँगा मैं निशां कितने

ए परिंदे उड़ान भर के देख
तेरे आगे हैं आस्मां कितने

ऐसे पल जिनमें तेरा साथ न था
मुझ पे गिरे हैं वो गिरां<ref>भारी</ref> कितने

एक ताबिर के न होने से
हो गये ख्वाब रायगां<ref>बेकार</ref> कितने

ये ज़माने पे खुल न जाए कहीं
राज़ है अपने दरमियाँ कितने

ढूँढ़ने से कहीं खुशी न मिली
गम मिले है यहाँ वहाँ कितने

ज़िंदगी में कदम कदम पे ज़हीन
देने पड़ते हैं इम्तिहां कितने

शब्दार्थ
<references/>