Last modified on 12 सितम्बर 2009, at 18:49

वे भला तुम्हारी कविता क्यों पढ़ेंगे / अवतार एनगिल

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल }} <poem>...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह बच्चा
जिसके बस्ते का बोझ
अपने वज़्न से ज़्यादा है
हर सुबह
सूरज के साथ-साथ
बस पकड़ने भागता है
औ' अनिवार्य विषय रटने के लिए
देर तक जागता है

वह बच्चा
किसी भी प्रतियोगिता में
कभी नहीं हारता है
अंग्रेज़ी कविताएं रटकर
अपनी थकान उतारता है
तुम्हारी कविता क्यों पढ़ेगा भला ?

वह औरत
मैली धूप की चादर ओढ़कर
रसोईघर में पकती है
जिसकी सास, ननद न मर्द से पटती है
रात-दिन खटती है
ख़ुश्बूदार विज्ञापनों में से गुज़रते हुए
तीस की उम्र में
लगातार झड़ते हैं
बच्चे जिसे सुबह-शाम
हकलान करते हैं
.....रात चित्रहार देखते हुए
जो बिना पढ़े
नायक-नायिकाओं के नाम जान जाती है
तुम्हारी कविता पढ़कर क्या करेगी ?


वह आदमी
शाम छः बजे
घर लौटते हुए
अपना सुरमई झोला उठाए
सब्ज़ी बाज़ार में
डरा-डरा चलता है
पूछो तो कहता है--- अच्छा हूं।
पर इससे आगे
बात नहीं करता है

वह शख़्स
हर पोस्टर पर छपा है
हर दीवार पर खुदा है
जो हज़ार बरसों से गुमशुदा है
तुम्हारी कविता कैसे पढ़ेगा !