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चलते चलते शाम हो गई / निर्मला जोशी

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चलते-चलते शाम हो गई, रात तुम्हारे नाम हो गई।

ओ रे पंछी नील गगन के
गीतों में कर रैन बसेरा।
डैने हलके हो जाने से
होगा तेरे नाम सवेरा।
चर्चा होगी चौराहों पर, बात ख़ास थी, आम हो गई।

रात-रात भर रंग बिखेरे
बहुत सवेरे चलना होगा।
आज झरे है पंख गुलाबी
कल सुधियों में पलना होगा।
नज़र मिली तो हम-तुम सबकी पीड़ाएं नीलाम हो गई।

कल को भारी सांसें होगी
घुटी-घुटी सी आहें होंगी।
सूनेपन को देख-देखकर
बदली-बदली राहें होंगी।
गीत-प्रीत की इस डगरी पर मीरा भी घनश्याम हो गई।

एक हो गए आंसू-आंसू
एक हो चली सबकी धड़कन।
एक लहर सी चढ़ी जवानी
एक महक का लौटा बचपन।
एक फूल पर स्र्का समय तो एक गंध अविराम हो गई।