भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भारती वन्दना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
भारति, जय, विजय करे कनक - शस्य - कमल धरे! लंका पदतल - शतदल गर्जितोर्मि सागर - जल धोता शुचि चरण - युगल स्तव कर बहु अर्थ भरे! तरु-तण वन - लता - वसन अंचल में खचित सुमन, गंगा ज्योतिर्जल - कण धवल - धार हार लगे! मुकुट शुभ्र हिम - तुषार प्राण प्रणव ओंकार, ध्वनित दिशाएँ उदार, शतमुख - शतरव - मुखरे!