दीवानगी से दोश पे जुन्नार भी नहीं / ग़ालिब
दीवानगी से दोश<ref> कंधा</ref> पे जुन्नार<ref>जनेऊ </ref> भी नहीं
यानी हमारे जेब में इक तार भी नहीं
दिल को नियाज़े<ref>आकांक्षा </ref>-हसरते-दीदार<ref>दर्शनों की इच्छा</ref> कर चुके
देखा तो हम में ताक़ते-दीदार<ref>देखने की शक्ति</ref> भी नही
मिलना तेरा अगर नहीं आसाँ तो सह्ल <ref>आसान </ref>है
दुश्वार<ref>कठिनाई </ref> तो यही है कि दुश्वार <ref>कठिन </ref>भी नहीं
बे-इश्क़<ref> बिना प्रेम के</ref> उम्र कट नहीं सकती है और याँ<ref>यहाँ</ref>
ताक़त बक़द्रे<ref>अत्याधिक</ref>-लज़्ज़ते-आज़ार<ref>दुखों का स्वाद</ref> भी नहीं
शोरीदगी<ref>जुनून</ref> के हाथ से है सर, बवाले-दोश<ref>कंधे की मुसीबत</ref>
सहरा में ऐ ख़ुदा कोई दीवार भी नहीं
गुंजाइशे-अदावते-अग़यार<ref>ग़ैरों की दुशमनी</ref>इक तरफ़
याँ दिल में ज़ओफ़<ref>कमज़ोरी</ref>से हवसे-यार भी नहीं
डर नाला-हाय-ज़ार<ref>आर्तनाद</ref>से मेरे ख़ुदा को मान
आख़िर नवा-ए-मुर्ग़े गिरिफ़्तार<ref>क़ैद पक्षी का रुदन</ref>भी नहीं
दिल में है यार की सफ़े-मिज़्गाँ<ref>पलकों की पंक्ति</ref>से रूकशी<ref>सम्मुख</ref>
हालाँकि ताक़ते-ख़लिशे-ख़ार<ref>काँटे की चुभन</ref>भी नहीं
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
देखा ‘असद’ को ख़लवत<ref>एकान्त</ref-ओ-जलवत<ref>सभा</ref>में बारहा
दीवाना गर नहीं है तो हुशियार भी नहीं