भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जहाँ चलना मना है / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:38, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग' |संग्रह= }} <poem> जहाँ चलन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ चलना मना है
वही इक रास्ता है
तुम्हें जो पूछता, वो
क्या खुद को जानता है
सुबह कैसी, अभी तो
ये मयखाना खुला है
ये कहना तो ग़लत है
कि हर ग़लती खता है
यहाँ शैतान है जो
कहीं वह देवता है
उधर सोने की खानें
इधर ताज़ी हवा है
न जिसने हार मानी
वही तो जीतता है
झुकाकर सिर जिया जो
वो जीते जी मरा है
'पराग' अब कुछ न कहना
बचा कहने को क्या है!