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ज़मीनें है कहीं सूखी (ग़ज़ल) / रंजना भाटिया
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जमीनें हैं कहीं सूखीं कहीं बादल बरसता है
यहाँ इतनी मुहब्ब्त है, ये दिल क्यों फिर तरसता है
मिली जब भी नजर उनसे धड़कता है हमारा दिल
पुकारे वो उधर हमको, इधर दम क्यों निकलता है
बहे ये इश्क की थोड़ी हवा अपने भी जानिब कुछ
जरा देखें ये तेवर मौसमों का कब बदलता है
बिखेरे मेरे रास्ते पर कभी तो रौशनी थोड़ी
कि देखें प्यार का दीपक ये कब दुनिया में जलता है
खिले हैं फूल कितने बागबाँ में इश्क के यारों
मेरी बगिया में भी ये फूल देखें कब महकता है
लिये कब तक फिरेंगे हम कि इस बेनाम रिश्ते को
जो आँसू बन के पलकों पर यूं ही आ कर ठहरता है
ख्यालों की मेरी दुनिया भरी कितने सवालों से
जो तुम पहलु में आओ, ख्वाब आँखों में उतरता है