भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहा-अनकहा / रंजना भाटिया
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>खिले पुष्प सी गंध की तर...)
खिले पुष्प सी
गंध की तरह ..
शंख ध्वनि की
गूंज सी ..
पहुँच रही हूँ
मैं ...
तुम तक
अपने ही...
कुछ कहते हुए
लफ्जों में
या.....
अन्तराल की
बहती खामोशी में ....!
>>>>>>><<<<<<<
चलो इसी पल
सिर्फ़ इसी क्षण
हम उतार दे
हर मुखौटे
और हर
बीते हुए
समय को
और
वर्तमान बन जाए
इसी पल
सिर्फ़ इसी पल .....