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छिड़ गये साज़े-इश्क़ के गाने / फ़िराक़ गोरखपुरी
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छिड़ गये
साज़े-इश्क़ के गाने
खुल गये ज़िन्दगी के मयख़ाने
आज तो कुफ्रे-इश्क़े चौंक उठा आज तो बोल उठे हैं दीवाने
कुछ गराँ1 हो चला है बारे-नशात आज दुखते हैं हुस्ने के शाने2
बाद मुद्दत के तेरे हिज्र में फिर आज बैठा हूँ दिल को समझाने
हासिले-हुस्नो-इश्क़ बस है यही आदमी आदमी को पहचाने
तू भी
आमादा-ए-सफ़र हो फ़िराक
काफ़िले उस तरफ़ लगे जाने
1- भारी, 2- कन्धे