भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या हुआ / सुधा ओम ढींगरा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> रौशनी की धरती पर चलते हुए अं...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रौशनी की धरती पर
चलते हुए
अंधेरों से
पिघलने लगी
और
दर्द की बस्तियों
से दोस्ती कर
आँचल कागज़ के फूलों
से भरने लगी.

नफरत भरे दिलों
के अंगारों की
जलन से
बचने लगी
और
वर्षों से भरे
दिल के छालों को
न छेड़ दे कोई,
उन्हें
संजोने लगी.

समय के
थपेड़ों ने
सर
झुका दिया
और
लोगों ने
सोचा कि
प्रार्थना,
उपासना
करने लगी.