भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोच रही है गंगाबाई / भगवत रावत

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिर्फ एक ही बेटा है गंगाबाई का
छोड़ गया था बाप ज़रा सा उसे गोद में
कैसे काटी फूँक-फूँक बच-बचाकर
अपनी कठिन उमर गंगाबाई ने
वही जानती

बरतन-झाड़ू-पोंछा करके
किसी तरह बेटे का दसवाँ पास कराया
पर जब से उसका बेटा लग गया काम से
सबके चेहरे बदल गये हैं

गंगाबाई का लड़का अब
जब पैन्ट और बुश्शर्ट पहनकर
बालों में अच्छे से कंघा-वंघा करके
कार चलाता है सरकारी
तो पड़ोस के लोगों की आँखें
ऐसे जलने लगती हैं जैसे
सरकारी गाड़ी दहेज में घर आई हो

सारे लोग मोहल्ले भर के
मन ही मन ऐसे रहते हैं जैसे
गंगाबाई ने कोई अपराध किया हो
लड़का भी कुछ कम अकड़ैलू है
सबसे अलग रहता है
सभी जगह कहता फिरता है
उसे नहीं परवाह किसी की

गंगाबाई नहीं चाहती उसके बेटे को
लगे किसी की नज़र-बद्दुआ
अब तक जैसे सबसे मिल-जुलकरर
रहती आई गंगाबाई
गंगाबाई वही चाहती
लेकिन जिस दिन से उसके बेटे ने
साफ कह दिया
अम्मा, अब तू कभी किसी साले के घर का
झाड़ू-पोंछा नहीं करेगी
घर बैठेगी आखिर मेरी भी इज़्जत है
बस, उस दिन से उसके
पास, पड़ोस, जात-बिरादरी वाले मुँह बिचकाकर
आपस में गंगाबाई को
कहने लगे गंगा महारानी

अब महारानी जैसी गाली सुनकर
गंगाबाई इतना खौली...इतना खौली
कि आख़िर में उसने भी कह डाला
हाँ...हूँ महरानी
पर उस दिन से
उसके मन को चैन नहीं है
मन ही मन बड़-बड़-बड़-बड़ करती रहती है
और इधर गंगाबाई ने जबसे
सभी घरों का झाड़ू-पोंछा छोड़ दिया है
बड़े घरों की सभी औरतें
जब-जब जुटती हैं दुपहर में
अक्सर गंगाबाई की चर्चा करने लगती हैं
कोई कहती
छोटी जात ज़रा में कितना इतरा जाती
कोई कहती
गंगाबाई ने ही एक अनोखा श्रवणकुमार जना है

सोच रही है गंगाबाई
उसके लोगों की आँखों में
खटक रहा क्यों उसका बेटा
ऊपर वालों की आँखों में
खटक रहा क्यों उसका बेटा
दोनों की दोनों आँखों में
खटक रहा क्यों उसका बेटा

किससे बोले गंगाबाई
किसको अपना दुख बतलाये
उसने कभी नहीं सोचा था
ऐसा दिन भी आ सकता है
उसने ऐसी क्या गलती की
सोच रही है गंगाबाई।