भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हैं भरम दिल का मोतबर रिश्ते / बुनियाद हुसैन ज़हीन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण (हैं भरम दिल का मोतबर रिश्ते/ बुनियाद हुसैन ज़हीन का नाम बदलकर हैं भरम दिल का मोतबर रिश्ते / बुनियाद)
हैं भरम दिल का मोतबर रिश्ते
आज़माओ तो मुख्तसर रिश्ते
हो गए कितने दर-ब-दर रिश्ते
अपने ही खून में हैं तर रिश्ते
कल महकते थे घर के घर, लेकिन
बन गए आज दर्दे -सर रिश्ते
उनसे उम्मीद ही नहीं रक्खी
वरना रह जाते टूट कर रिश्ते
कम ही मिलते हैं इस ज़माने में
दर्द के, गम के, हमसफ़र रिश्ते
मैं इन्हें मरहमी समझता था
हैं नमक जैसे ज़ख्म पर रिश्ते
हैं ये तस्बीह के से दाने "ज़हीन"
बिखरे-बिखरे से हैं मगर रिश्ते