मित्र / संजय कुंदन
एक क़िले के सामने
एक राजा के गुणों का
बखान करते हुए वह
उत्सुकता से पर्यटकों को देख रहा था।
वह टटोल रहा था
कि पर्यटक उस राजा के वैभव से
अभिभूत हो रहे हैं या नहीं
वह एक राजा के पक्ष में
इस तरह बोल रहा था
जैसे दरबारी या चारण हो
उसका इतिहास राजा के शयन कक्ष से शुरू होकर
क़िलों, तोपों, जूतों, वस्त्रों से होता हुआ
रसोई में समाप्त हो जाता था
वह राजा की पराजय और समझौतों पर
कुछ नहीं बोलता था
तरह-तरह की मुद्राएँ बनाकर
स्वर में उतार-चढ़ाव लाकर
वह प्रयत्न कर रहा था
कि उसे माना जाए राजा का समकालीन
उसे ही स्वीकार किया जाए
उस युग का एकमात्र प्रवक्ता
वह चाहता था
कि पर्यटक उसे अतीत में बैठा हुए देखें
पर वह दिखता था एकदम
वर्तमान का आदमी
अपने को एक अनदेखे युग का
हिस्सा बनाने की हर कोशिश में
वो विफल हो रहा था
बड़ी प्यारी लग रही थी उसकी विफलता।