भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वक्त बूँदों के उत्सव का था / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


 वक्त बूँदों के उत्सव का था
  बूँदें इठला रही थी
  गा रही थीं बूँदें झूम - झूम कर
  थिरक रही थीं
  पूरे सवाब में

  दरख्तों के पोर - पोर को
  छुआ बूँदों ने
  माटी ने छक कर स्वाद चखा
  बूँदों का

  रात कहर बन आयी थी बूँदे

  सबेरे चर्चा में बारिश थीं

  बूँदें नहीं