भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लौट आया मधुमास / शशि पाधा
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा }} <poem> आज अचानक अंगना में लौट आया मधुमास ...)
आज अचानक अंगना में
लौट आया मधुमास प्रिय
क्या तुम भी हो कहीं पास प्रिय?
पंछी नभ में डोल रहे
कलरव में कुछ बोल रहे
नील गगन के पंथी बादल
फागुन के रंग घोल रहे
देते कुछ आभास प्रिय कि-
तुम हो कितने पास प्रिय
पुष्प गन्ध से पगी-पगी
पुरवाई आ गले लगी
धूप -छाँव आँगन में खेलें
दोपहरी कुछ जगी जगी
जागी कुछ-कुछ आस प्रिय कि-
तुम ही हो कहीं पास प्रिय
सूरज की अनुरागी किरणें
कोमल कलियाँ चूम रहीं
नव किसलय की ओढ़ चुनरिया
डाली -डाली झूम रही
कण-कण मुखरित हास प्रिय, क्यों
लगता तुम हो पास प्रिय?
लहरें छेड़ें सुर संगीत
कोकिल के अधरों पे गीत
मुग्ध चातकी के नयनों से
छलक रही चिर संचित प्रीत
मन में इक विश्वास प्रिय कि-
तुम ही हो मधुमास प्रिय